मित्र हो, नमस्कार.


"यज्ञकुण्ड अनुभूतीचे, धगधगून फुलले होते
चेहरे नव्या सृजनांचे, ज्वाळांत उजळले होते
मी, हवि शब्द-शब्दाचा अर्पितांच, कांतरवेळीं
दशदिशांत उन्मेषांचे, स्फुल्लिंग उधळले होते " !!

----- रविशंकर.
९ डिसेंबर २००८.

Tuesday, April 14, 2020

॥ उडान ॥










                       


पधारी तेरी घर के ऑगन मे डोली
हुई तब से सारी मुसीबतों की होली
भरी खैरियत और खुशियों से झोली
चिराग जैसे घर उजल गया       

उडान के लिए हमने पंख फडफडाए
तो देख आसमाँ भी झुक गया... ...      
॥ १॥
 

दिलो जाँ से पाला तुम्ही नें घरौंदा
निभाया बखूबी हिफाजत का वादा
खुदा दे उमर तुमको मुझसे भी ज्यादा
हर एक ख्वाब पूरा हो गया     

उडान के लिए हमने पंख फडफडाए
तो देख आसमाँ भी झुक गया... ...       
॥ 2॥
 

ये चाहत का कुर्ता जो तू ने सिलाया
न गुण्डियाँ लगी थी, न जेबों का साया
पहनके इसे मैने जन्नत को पाया
जो देख कर, समाँ भी रुक गया    

उडान के लिए हमने पंख फडफडाए
तो देख आसमाँ भी झुक गया... ...        
॥ 3॥
 

अभी देखता हूँ जो मै पीछे मुडके  
कटी जो जिन्दगी, रेशमी धागे जुडके
मेरी खुशनसीबी से दिल आज धडके
कि तुम सा हमसफर जो मिल गया   

उडान के लिए हमने पंख फडफडाए
तो देख आसमाँ भी झुक गया... ...        
॥ ४॥       

**********************************************
 

--रविशंकर.
१० एप्रिल २०२०

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